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नकारात्मक मन
नकारात्मक मन
प्रश्न-नकारात्मक विचार मन में क्यों आते हैं, नकारात्मक विचार कैसे बचा जाये?
उत्तर-यह मन के स्वभाव के कारण आते हैं। हमारा मन अहंकार मे रस लेता है। आत्मकेन्द्रित होना इसे भाता है। यह दुख की तरफ दौड़ता हैं दुख की तरफ दौड़ने के इसे दो मार्ग ही दिखाई देते हैं। एक है राग का है। दूसरा है द्वेष का। जहां भी इसको इसका भोजन मिलता है, यह स्वत: उधर चला जाता है, और आदमी को पता भी नहीं चलता
यह हमारा मन स्वचालित है। यह तुरन्त ही प्रतिक्रिया कर देता है। विषय से इन्द्री टकराते ही, तुरंत जवाब दे देता है । यह सोचने का मौका ही नहीं देता। सोचने के लिये होश की जरूरत पड़ती है, जो हमारे पास नहीं होता,
और हम मन की गिरफ्त में आ जाते हैं। यह नकारात्मक विचार भी इसी के कारण आते हैं। आदमी मन ही मन इसे न्यायोचित भी ठहरा लेता है। यह मन हमारा विधायक क्यों नहीं सोच पाता? यह मन वहीं विधायक होगा जहां राग होगा। यह विधायक होना एक तरफा हुआ। द्वेष में तो तुरंत विरोधी हो जायेगा।
अब सवाल उठता हैं, इससे कैसे बचा जाये? मित्र पहली तो बात यह आपके मन में यह भाव आया कि इन नकारात्मक विचारों से कैसे या जाये। यह शुभ है। सबसे पहले किसी बीमारी का इलाज करने से पहले इस बीमारी का स्वीकार भाव आवश्यक है। मरीज यह ही ना स्वीकार करे की मैं बीमार हूं, फिर उसका इलाज सम्भव नहीं है। आप बीमारी को ठीक करने में एक कदम आगे बढ़ चुके हो। मित्र यह शारीरिक रोग नहीं हैं. मानसिक रोग है। करीब करीब सभी इस रोग की गिरफ्त में है. चाहे माने या ना माने।
यह मन हमारा शूक्ष्म है, इस शरीर के मुकाबले। इसलिये इसका इलाज श्री सूक्ष्म ही है। मन के स्वभाव को पलटने में समय लगता है। मित्र सबसे पहले होश साधना पड़ता है। मन के प्रति सजग रहना पड़ेगा। मन के प्रति सजग रहने के लिये बुद्ध पुरुषों ने ध्यान की खोज की है। ध्यान का अभ्यास करना होता है। अभ्यास करने से पहले ध्यान सीखना आवश्यक है। दूसरा काम ध्यान का अभ्यास करने के साथ साथ मैत्री (मैता-भावना) को जीवन का हिस्सा बनाना होता है।
जो लोग बगैर ध्यान के मैत्री का अभ्यास करेगें, उनकी मैत्री ऊपर ऊपर रहेगी और अचेतन तक नहीं जा पायेगी। राग-द्वेष तो अचेतन में समाये हुये है इसलिए मैत्री भी अचेतन मन तक फैली हुई हो। जब हम सभी के प्रति. शर्त बिना बदले में कुछ चाहे मैत्री का भाव रखेगें तो बैर स्वत: ही तिरोहित हो जायेगे जब बैर ही नहीं रहेगा, तब नकारात्मक विचार कैसे उठ जाएंगे? मित्र बस मुझे तो इतना ही पता है।
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