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झूठ से लाभ
झूठ से लाभ!
प्रश्न- क्या "झूठ से लाभ होता है, क्या तभी आदमी झूठ बोलता है" ?
उत्तर-हाँ झूठ से आदमी को स्थूल लाभ होता है। आदमी की बुद्धि ही यदि स्थूल होगी, तो वह इस तुरंत से लगने वाले लाभ को देख सकेगा।
आदमी की बुद्धि यदि शुक्ष्म होगी, संवेदनशील होगी तो वह इससे होने वाली शूक्ष्म हानि को भी देख ही लेगा। सवाल सिर्फ इतना है कि हमारी चेतना कितनी स्पष्ट है। सब कुछ इस चेतना पर, होश पर निर्भर करता है। होश की मात्रा पर निर्भर करता है। हमने झूठ बोलकर लाभ पा लिया। अब हम यह देखना है कि हमारे चित्त पर इसका क्या प्रभाव पड़ता हैं?
जीवन में हम कोई भी कर्म करें, हमारा चित्त जरूर प्रभावित होगा। चाई कर्म करने से पहले या बाद में हो। शरीर व मन आपस में जुड़े हैं, इसलिये एक दूसरे से प्रभावित होंगे ही।। जब हम अकुशल मन से, या कहें दुर्भावना से या कहें झूठ बोलकर कोई कर्म करते हैं, तो हमारा मन तुरंत ही अशांत हो जाता है। बेचैन हो जाता है।
मित्रो एक बात और है। झूठे आदमी को हमेशा भय में जीना पड़ेगा। कहीं किसी को पता न चल जाये? झूठ को हर वक्त याद रखना पड़ता है। किस को मैने क्या क्या झूठ बोला था? यह याद रखना ही बेचैनी पैदा करवाती है। सत्य को याद करने की जरूरत ही नहीं पड़ती। इसलिये सच्चा आदमी सहज व शान्त रहेगा। अकुशल कर्म जितने इकट्ठे होते चले जाते हैं, अशान्ति की मात्रा भी उसी अनुपात में बढ़ती चली जाती है। यह अशान्ति हमारे शरीर को हर वक्त प्रभावित करती रहती हैं। हमारा ब्लड प्रेशर भी इससे प्रभावित होगा ही हमारे स्नायुओं (तंत्रिका तंत्र) पर भी इस का विपरीत असर पड़ेगा। स्नायुओं में हर वक्त खिचाव बना रहेगा। इसका यह परिणाम होगा कि स्नायु कमजोर पड़ जाएंगे मानव व्यवहार अनियंत्रित (धमनी बिहेवियर डिओर्डर) हो जायेगा।
भगवान बुद्ध कहते "लाभ का मार्ग दूसरा है, निर्वाण का दूसरा"। इस लाभ के कारण ही आदमी जाल में फंसता है, मछली भी छोटे से मांस के टुकड़े के कारण फस जाती है, लाभ को मत देखो चित्त पर पड़ने वाले प्रभाव को देखो। मूल बात तो यह चित्त ही है। मित्रों यह चित्त ही निर्णायक है। यह सब क्या होगा? यह इसलिये होगा, क्योंकि हम पहले कदम पर ही सख्त नहीं रह पाये। हमने स्थूल लाभ तो देख लिया पर उसके प्रभाव की अनदेखी कर दी। मित्रो चेतना का विकास होश से होता है। होश का विकास ध्यान के अभ्यास से होता है। सब कुछ हमारे हाथ में हैं। ना तो भाग्य को दोष देने की जरूरत है ना ही किसी परमात्मा पर जिम्मेदारी डालने की जरूरत हैं। इसलिये बुद्ध ने कहा है अपने स्वामी आप बनो। किसी को भी अपना स्वामी मत बनने दो।
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