विपरीतता का सिद्धांत
विपरीतता का सिद्धांत
प्रश्न-विपरीत लिंगियों के बीच मुख्य आकर्षण सिर्फ सेक्स ही है वरना ऐसी कौन सी भावनाएं है, जो समान लिंगी आपस में व्यक्त नहीं कर सकते हैं ?
उत्तर-मित्र यह बात सही है कि आदमी सेक्स के प्रति स्त्री से आकर्षित है। सेक्स के प्रति स्त्री से ही क्यों आकर्षित है? सेक्स तो पुरुष से भी सकता है, और कर भी रहा है। आकर्षण का कारण भिन्नता है, विपरीतता है।
पहली हैं शरीर की भिन्नता। शरीर की बनावट। शरीर का उतार चढाव शरीर का प्रकृतिमयः (शहज) होना। शरीर का सौष्ठव होना। और भी भिन्नता है शरीर में, जिसका मैं जिक्र नहीं कर रहा। दूसरा है मन की भिन्नता। पुरुष बौद्धिक (संकल्प) तल पर जीता है, स्त्री हदय (समर्पण) के तल पर, दोनों बिलकुल विपरीत। पुरुष को स्त्री का हृदय का तल, समर्पण का स्वभाव, भिन्नता के कारण आकर्षित करता है। पुरुष की हां स्त्री को जो आकर्षित करती हैं।
एक मनोवैज्ञानिक हुए हैं "कुए", जिन्होंने एक सिद्धांत खोजा "The law of reverse effect"। उन्होंने यह खोजा, मनुष्य के अन्दर सारा आकर्षण विपरीत की वजह से है।।। आपने गांव में एक कहावत सुनी होगी दूर के ढोल सुहावने।
एक धनी आदमी को देखो, जब वह एक गरीब आदमी को पत्थरों पर गहरी नींव में सोता देखता है। एक दम कह उठता अरे हमारे से तो ये दिया है, देखो कैसे मजे में सो रहा है। हमें तो ठीक से नींद भी आती।
वही दूसरी तरफ वह सड़क पर सोने वाला व्यक्ति जब कोठी और बंगले को निहारता हैं, एक गहरी सांस लेते हुए कहता है, अरे हमारा कोई जीवन है, देखो स्वर्ग का मजा तो ये कोठी बंगले वाले ही ले रहे ।
एक गृहस्थ सन्यासी से आकर्षित हैं। सन्यासी सोचता है. यह गृहस्थ ही मेरे से ठीक है।
शादीशुदा सोचता है, इससे तो कुंवारे ही ठीक थे। कुंवारे शादी शुदा से आकर्षित है।
यह सारा खेल विपरीतता के आकर्षण की वजह से ही हैं। आखिर ऐसा क्यों होता है? यह मन, जो इसके पास है, उसकी फिक्र छोड़ देता है. जो इसके पास नहीं है, कहीं दूर, वहां चला जाता है। यह मन के स्वभाव के कारण है, इसकी बनावट के कारण होता है।
जब मन चेतना के नजदीक होता है, तब यह छटपटाने लगता है, मरने लगता है। परन्तु आदमी शान्ति अनुभव करने लगता है। जब मन की ऐसी स्थिति होती हो, जब यह दिखाई देता हो, चेतना ही शेष रह जाये तब परम शांति अनुभूति होती हैं। इसे कहते है मन की संक्षिप्त स्थिति, अनमनी अवस्था। दूसरी तरफ जब मन चेतना से दूर होता हैं, स्वयं से दूरी ही बनाये रखता हैं, तब शान्ति भी दूर ही रह जाती हैं। यह है मन की विक्षिप्त स्थिति । मन जितना स्वयं से दूर रहे, उतना ही खुश होने का आभास देता है, पर होता है तनाव में। इसे ही मन सुख कहते है।
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